हिमालय क्षेत्र में स्थित भगवान बदरीनाथ धाम देता है अनेकता में एकता का संदेश–
बदरीनाथ: चार धामों में सर्वश्रेष्ठ बदरीनाथ धाम अनेकता में एकता का संदेश देता है। धाम में देशी-विदेशी तीर्थयात्री भगवान के दर्शनों को पहुंचते हैं। रविवार को बदरीनाथ धाम के कपाट खुले तो भगवान बदरीनाथ को ओढ़े घृत कंबल को हटाया गया। इस वर्ष घृत कंबल छह माह बाद भी घी से पूरी तरह लबालब मिला। उस पर लगाया गया घी का लेप सूखा नहीं था। इसे देश के लिए शुभ माना जाता है। वर्ष 2023 में भी घृत कंबल का घी सूखा नहीं था।
यहां यह धार्मिक मान्यता है कि यदि बदरीनाथ के माथे की तरफ कंबल से घी सूख जाता है तो हिमालय क्षेत्र में सूखे की स्थिति पैदा होती है, और निचले हिस्से में घी सूखे तो देश में विपत्ति आती है। घृत कंबल को देश के प्रथम गांव माणा की महिलाओं के द्वारा तैयार किया जाता है। बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के दिन घी के लेप लगे कंबल को बदरीनाथ के ओढ़ा जाता है और कपाट खुलने के दिन इस कंबल को तीर्थयात्रियों में प्रसाद के रुप में वितरित किया जाता है।
बदरीनाथ धाम में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा शुरू की गई धार्मिक परंपराओं का आज भी पूरी तरह से निर्वहन किया जाता है। धाम में आज भी टिहरी राजा की कुंडली के आधार पर कपाट खुलने की तिथिघोषित होती है और कपाट खुलने के दिन राजा के प्रतिनिधि व राजगुरु धाम में मौजूद रहते हैं।