चिन्हित राज्य निर्माण आंदोलनकारी समिति की बैठक में कई मुद्दों पर हुआ मंथन, मुख्यमंत्री से शीघ्र वार्ता पर बनीं सहमति–
देहरादून: चिन्हित राज्य आंदोलनकारी समिति (पंजीकृत उत्तराखंड-दिल्ली) की आयोजित बैठक में कई मुद्दों पर मंथन हुआ। राज्य अतिथि गृह देहरादून में आयोजित हुई इस बैठक में केंद्रीय पदाधिकारियों के साथ ही उत्तराखंड राज्य के पदाधिकारी, मातृशक्ति, दिल्ली राज्य पदाधिकारी, जनपद, ब्लॉक व नगर के ब्लॉक पदाधिकारियों ने प्रतिभाग किया।
केंद्रीय अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में हुई बैठक में राज्य आंदोलनकारी एवं भाजपा संगठन महामंत्री आदित्यराम कोठारी ने कहा कि राज्य आंदोलनकारियों की न्यायोचित मांगें हैं, जल्द ही सभी समस्याओं के निराकरण के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से व्यक्तिगत वार्ता की जाएगी। साथ ही चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों के साथ भी वार्ता का नेतृत्व करेंगे। बैठक में मुख्य रुप से पांच बिंदुओं पर मंथन किया गया। जिनमें देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत, सांस्कृतिक धरोहरों को संजोए रखने के लिए विशेष प्रयास करने पर जोर दिया गया।
पहाड़ों से होने वाले पलायन व बेरोजगारी की समस्या से निपटने पर चर्चा की गई। कहा गया कि राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए सशक्त भू कानून एवं मूल निवास 1950 लागू किया जाना जरुरी है। यहां की सुरक्षा व संस्कृति की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है। राज्य में शराब, भू और खनन माफिया तथा रोजगार को हड़पने वाले बाहरी व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग उठाई गई।
उपस्थित वक्ताओं द्वारा अपने-अपने संबोधन में राज्य में स्वरोजगार और रोजगार के संसाधन बढ़ाने हेतु पारंपरिक कृषि फल, उद्यान तथा सांस्कृतिक धरोहरों को रोजगार से जोड़कर युवाओं को सार्थक दीर्घकालीन रोजगार दिए जाने पर जोर दिया। उत्तराखंड में पलायन को रोकने और कृषि को बचाए रखने के लिए आवारा जानवरों, जंगली जानवरों के द्वारा किए जा रहे नुकसान को रोकने के लिए हिमाचल राज्य की तर्ज पर कानून बनाए जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
चिन्हित राज्य आंदोलनकारी समिति के केंद्रीय मुख्य प्रवक्ता महिमानंदभट्टकोटी ने कहा कि राज्य गठन के 25 वर्षों बाद भी राज्य आंदोलनकारियों को न्याय नहीं मिला है। आज भी राज्य आंदोलनकारी अपने सम्मान और हक की लड़ाईलड़ रहे हैं। सर्वसम्मति से मांग उठी कि चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों को राज्य निर्माण सैनानी का दर्जा देकर उसी रुप में लाभ व सम्मान दिया जाए। कहा गया कि यह स्पष्ट देखा जाता है कि सरकारी तंत्र नौकरशाही और नेता, सरकारें राज्य का निर्माण करने वाले राज्य निर्माण सैनानियों को जीवनभर आंदोलनकारी ही बने रहने देना चाहते हैं।
यह दुर्भाग्य का विषय है, कि आंदोलनकारियों की दूसरी पीढ़ी भी 40-45 के पार होने वाली है,
चिन्हित राज्य आंदोलनकारीयों की पुरानी पीढ़ी के 40 प्रतिशत व्यक्ति सम्मान और लाभ की राह देखते हुए, दिनों दिन काल के ग्रास हो रहे हैं। पुरानी पीढ़ी समाप्ति की ओर है, ऐसे में आंदोलनकारियों को सरकारी लाभ मिलना क्या संभव है। यह विचारणीय प्रश्न है। केंद्रीय अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह रावत ने पिछले 21 सालों में लाए गए कई शासनादेशों का जिक्र करते हुए कहा कि स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी सरकार के द्वारा लाए गए शासनादेश में राज्य निर्माण सेनानी का दर्जा दिए जाने की बात कही गई थी,
और उसी के अनुरूप 21 बिंदुओं पर सीधा लाभ दिए जाने एवं राज्याधीन सेवाओं में समूह ग-घ में राज्य निर्माण आंदोलनकारीयों के परिवार के एक व्यक्ति को सीधे नियुक्ति दिए जाने का शासनादेश लाया गया था, उसके बाद कई शासनादेश और आए, जो कि आज भी ठंडे बस्ते में पड़े हैं, उन सभी अध्यादेशों को एक सूत्र में लाकर, कानूनी रूप देकर वर्तमान में राज्य निर्माण सेनानियों को उसका लाभ दिए जाने की पुरजोर पैरवी की गई। उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का 10 प्रतिशत क्षेतिज आरक्षण दिए जाने का धन्यवाद किया।
कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा 3100 रुपये पेंशन की गई थी, उसके बाद कई कई सरकारें आई, नेता आए पर किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पेंशन को बढ़ाकर 4500 रुपये किया, जो स्वागत योग्य है। मातृशक्ति ने बैठक में इस बात पर नाराजगी जताई कि मुख्यमंत्री की ओर से बार-बार राज्य निर्माण सैनानी का दर्जा दिए जाने का आश्वासन दिया जाता रहा है, लेकिन आज तक यह हो न सका।
इस मौके पर गढ़वाल प्रवक्ता सुभाष परिहार, यमकेश्वर के ब्लॉक अध्यक्ष कलम सिंह राणा, दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष, उत्तराखंड कार्यसमिति के पदाधिकारी, सदस्य के साथ ही डॉ. विपिन जोशी, विजय भट्ट, सुशील पुरोहित, राजेंद्र प्रसाद खुगशाल, दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष गौड़ जी, समिति के संरक्षक रावत जी, संयोजक महेश गौड़ के साथ ही कई गणमान्य लोगों मौजूद रहे।