चमोली जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत ने सुनाया फैसला
गोपेश्वर। जिला एवं सत्र न्यायाधीश बिंध्याचल सिंह की अदालत ने सरकारी रिकार्ड में हेराफेरी करने और कूटरचित दस्तावेज तैयार करने के मामले में तत्कालीन पटवारी (अब सेवानिवृत) और कानूनगो को दोषमुक्त कर दिया है। मामला 1996 में जमीन की रजिस्ट्री से जुड़ा है और इसमें 2007 में शिकायत दर्ज की गई थी।
वर्ष 2007 में तत्कालीन एसडीएम जोशीमठ निधि यादव ने कोतवाली में दर्ज कराई रिपोर्ट में कहा कि डॉ. विजयपाल व अरुण पाल के नाम औली लग्गा सलूड़डुंग्रा में श्रेणी पांच की जमीन है। इसे एक निजी होटल स्वामी को बेच दिया गया। जबकि विजयपाल अनुसूचित जाति का व्यक्ति है और खरीरदार सामान्य जाति से है। आरोप लगाया गया कि रजिस्ट्री में इस तथ्य को छिपाया गया। बिना तथ्यों की जांच के रजिस्ट्री कर दी गई और तत्कालीन राजस्व उपनिरीक्षक गरीब दास ने सात अगस्त 1996 को जमीन का दाखिल खारिज भी कर दिया।
अनुसूचित जाति के व्यक्ति की जमीन सामान्य जाति को बेचना विधि विरुद्ध है। आरोप लगाया गया कि निजी होटल स्वामी को लाभ पहुंचाने के लिए कर्मचारियों व अधिकारियों ने वैधानिक प्रक्रिया का अनुपालन न करते हुए सरकारी दस्तावेजों में हेरा फेरी कर कूटरचिज दस्तावेज तैयार किए।
पुलिस ने जांच के बाद तत्कालीन राजस्व उपनिरीक्षक गरीब दास व कानूनगो गोविंद दास के विरुद्ध कोर्ट में आरोप पत्र दायर किया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चमोली ने सात सितंबर 2019 को दोनों को दोषी करार देते हुए तीन साल की सजा व अर्थ दंड लगाया।
अभियुक्तों ने कोर्ट के इस आदेश को जिला एवं सत्र न्यायालय चमोली की अदालत में चुनौती दी। जिला एवं सत्र न्यायाधीश बिंध्याचल सिंह की अदालत ने दस्तावेजों व साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद दोनों को इस पूरे मामले में बरी कर दिया।