चमोली: अपवित्र मन नर्क है, पवित्र मन स्वर्ग है: मोरारी बापू–

by | May 9, 2025 | आस्था, चमोली | 0 comments


बापू ने राष्ट्र की वर्तमान ​स्थिति पर कहा एक ओर उन्माद है तो एक ओर उत्साह, राष्ट्र गौरव और राष्ट्र प्रेम है–नंदप्रयाग, 09 मई 2025: शुक्रवार को रामकथा के सातवें दिन के प्रारंभ में पूज्य बापू ने राष्ट्र की वर्तमान स्थिति पर संकेत करते हुए कहा कि एक ओर उन्माद है, एक ओर उत्साह है, राष्ट्र गौरव और राष्ट्र प्रेम है। बापू ने कहा कि हम स्वयं हमारी यात्रा की सब से बड़ी बाधा है।

हमारा स्वभाव ही हमारी बाधा है। परिस्थिति बदलने से कुछ नहीं होगा, मनस्थिति बदलनी होगी। सवाल हमारे बदलने का है, गांव, स्थान या स्थिति का सवाल नहीं है। आनंद तो बरस ही रहा है। बात केवल इतनी है कि हम मन:स्थिति बदलें।

नर्क की अपनी परिभाषा देते हुए बापू ने कहा कि अपवित्र मन ही नर्क है। अपवित्र बुद्धि और अपवित्र चित्त नर्क है। मन की पवित्रता स्वर्ग है।

अपवित्र मन से, मलिन मति से और विक्षिप्त चित्त से अहंकार को बल मिलता है।

तुलसीदासजी कहते है कि “निर्मल मन जन सो मोही पावा। मोहे कपट छल छिद्र न भावा।। “मानस के आधार पर पूज्य बापू ने बताया कि शंकराचार्यजी जिसे परानंद – पूर्णानंद कहते है उसे तुलसीदासजी अति आनंद कहते है। सुख की गीनती होती है, आनंद बेहिसाब होता है।

बापू ने कहा कि इष्ट ग्रंथो का स्पर्श मंगल है, निर्दोष बालक के सिर पर स्पर्श करना मंगल है, तुलसी के गमले का स्पर्श मंगल है। गाय माता का स्पर्श मंगल है, पादुका का स्पर्श और सद्गुरु ने दी हुई चीज का स्पर्श मंगल होता है। भजनानंदी बुद्ध पुरुष की माला को छूना परम मंगल स्पर्श है।

आकाश में खिले पूर्ण चंद्र के दर्शन का आनंद पूर्णानंद है और पूर्ण चंद्र के चित्र को देखकर आनंदित होना शून्यानंद है।

हरिनाम संकीर्तन के बाद कथा के क्रम में प्रवेश करते हुए पूज्य बापू ने गुरु वसिष्ठ द्वारा चारों भाईओ के नामकरण और चारों नामो के आध्यात्मिक अर्थ समजाये। नाम तीन प्रकार के होते है- व्यक्तिगत, वंशीय और वैश्विक। राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न वैश्विक नाम है।

विश्वामित्रजी का आगमन, राम लक्ष्मण को यज्ञ रक्षा हेतु ले जाना, यज्ञ रक्षा के बाद अहल्या उद्धार, जनकपुर में आगमन, पुष्पवाटिका में राम सिता मिलन, स्वयंवर में धनुष्य भंग, परशुरामजी का आगमन और विदाई, चारों भाईओं के ब्याह के बाद अयोध्या गमन और विश्वामित्रजी की विदाई के साथ बालकांड को समाप्त करते हुए पूज्य बापू ने आजकी कथा में अपनी वाणी को विराम दिया।

error: Content is protected !!