मां नंदा के सिद्धपीठ कुरुड़ और बंड क्षेत्र के लोगों ने जिलाधिकारी को बताई नंदा की बड़ी जात की सच्चाई, कहा यात्रा नौटी से नहीं कुरुड़ से हो शुरु–
गोपेश्वर, 22 जुलाई 2025: प्रत्येक बारह सालों में आयोजित होने वाली मां नंदा की राजजात यात्रा को राजजात नहीं बड़ी जात कहा जाता है। प्रत्येक साल मां नंदा की लोकजात आयोजित होती है, जबकि प्रति 12 वर्षों में नंदा की बड़ी जात होती है। लेकिन पिछले 37 सालों से इस यात्रा को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है। मां नंदा का सिद्धपीठ कुरुड़ है। यात्रा का शुभारंभ कुरुड़ से होना चाहिए, लेकिन इसे नौटी से शुरु किया जाता है, जो कि गलत है। यह मां नंदा देवी राजराजेश्वरी सिद्धपीठ कुरुड़ मंदिर विकास खंड नंदानगर, बड़ीनंदाजात 2026 आयोजन समिति के पदाधिकारियों का कहना है।
मंगलवार को उन्हाेंनेेजिलाधिकारी से भेंट की और उन्हें ज्ञापन सौंपा। उन्होंने कहा कि नंदा जात (बड़ी और छोटी जात) का मुख्य मंदिर राज राजेश्वरी सिद्धपीठ कुरुड़ मां के गौड़ पुजारियों का गांव कुरुड़ विकास खंड नंदानगर में स्थित है। जहां से मां नंदा देवी अपनी डोलियों में विराजमान होकर प्रत्येक वर्ष तथा प्रत्येक 12 वर्ष में वृहद रुप में बधाण, दशोली और बंड क्षेत्र की यात्रा कर कैलाश जाती है जिससे उत्तराखंड के जनमानस की आस्था जुड़ी है। तथा विभिन्न क्षेत्रों से छंतोली के साथ श्रद्धालु बड़ी संख्या में इस यात्रा में शामिल होते हैं।
मां नंदा की 12 वर्षीय जात के समय अल्मोड़ा से नंदा देवी की छंतोली कोट भ्रामरी से कटार, गढ़वाल तथा कुमाऊं के सभी नंदा देवी मंदिरों तथा सभी श्रद्धालुओं की भांति कांसुवा से राजा की छंतोली, नंदकेशरी में पहुंचकर मां नंदा की मुख्य यात्रा से जुड़ जाती है।
यात्रा के अंतिम गांव लाटू धाम वाण पहुंचने पर दशोेली व बंड क्षेत्र की डोली, दशमद्वार के निशान, लाता की डोली और बदरीनाथ की छंतोली का मिलन मां नंदा राज राजेश्वरी कुरुड़ की डोली से होता है यहां से परंपरागत रुप से केवल मां नंदा भगवती कुरुड़ की डोलियां तथा समस्त श्रद्धालुओं की छंतोलियां ही कुरुड़ के गौड़ पुजारियों के सानिध्य में आगे की यात्रा संपन्न करती है।
नंंदजात की देवी की डोलियों की हर व्यवस्था पड़ावों में पड़ने वाले पड़ाव के भक्तजन करते हैं। वहीं जात में आए श्रद्धालु यात्रियों की सुख सुविधा की व्यवस्था प्रशासन की ओर से की जाती है।
वर्ष 1987 से किसी निजी कारणवश इस पृष्ठभूमि को बदलने का प्रयास निरंतर किया जा रहा है। जिसमें नौटीकर्णप्रयाग को मुख्य पड़ाव, यात्रा प्रारंभ करने का स्थान चित्रित कर मां नंदा राजराजेश्वरी की यात्रा को राजजात कहकर मां की महिमा को कम कर राजा की महिमा का गुणगान कर यात्रा के मूल स्वरुप को परिवर्तित किए जाने का कुचक्र चलाया जा रहा है।
इस प्रयास के मुख्य भूमिका में एक एनजीओ श्री नंदादेवी राजजात समिति नौटी है। इसमें मुख्य पदाधिकारी वर्ष 1987 में जो थे आज भी वही हैं। इसमें 1987 से आज तक के कालखंड में शासन-प्रशासन द्वारा एक एनजीओ के मार्गदर्शन चलने को वरियता दी जाने तथा जनभावना व जनहित को दरकिनार किया गया।
समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि राजजात का विरोध किया जाएगा। समिति के मुख्य पदाधिकारी कर्नल एचएस रावत ने कहा कि राजजात को बड़ी जात ही कहा जाए। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से ही देवी की पूजा व व्यवस्था हेतु गूंठ गांव कुरुड़, चरबंग, होण व मथकोट निर्धारित किए गए थे।
सिद्धपीठ कुरुड़ से प्रतिवर्ष नंदा की लोकजात यात्रा वेदनी कुंड जाती है। जबकि प्रत्येक 12 वर्ष के अंतराल के बाद बड़ी जात की यात्रा का प्राविधान है। जिसमें राजा पूजा देने व कांसुवा से अपनी छंतोलीमनोति पूर्ण करने के लिए आते हैं। और नंदकेशरी से अपनी छंतोली व मनोति को श्री नंदा देवी राजराजेश्वरी को अर्पित करते हैं। तत्पश्चात देवी की यात्रा के साथ सम्मलित होकर अपने राजा यशोवर्धन व रानी बालपा के पितरों का श्राद्ध करने के लिए वेदनी कुंड में जाते हैं। और वहां पर कुरुड़ से आये हुए गौड़ ब्राह्मणों द्वारा उनकी संपूर्ण पूजा की जाती है।
राजा यशोवर्द्धन व रानी बालपा 739 ई से 750 ई के लगभग नंदा देवी यात्रा में आए थे पर कुछ सूतक होने के कारण रुपकुड की त्रासदी में दिवंगत हो गए थे उनकी मोक्ष हेतु वेदनी में पितर पिंडदान होता है।