मानवता की मिसाल बनती जा रही टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड की विष्णुगाड़–पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना–

by | Sep 2, 2025 | चमोली, ब्रेकिंग | 0 comments

मानवता की मिसाल बनती जा रही टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड की विष्णुगाड़–पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना–

गांवों की समृद्ध परंपराओं और महिला सश​क्तिकरण के लिए वीपीएचईपी की पहल से बदल रही गांवों की तस्वीर–

पीपलकोटी, 02 सितंबर 2025: चमोली की शांत वादियों में बसे छोटे-छोटे गांव न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाने जाते हैं, बल्कि यहां की सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक एकजुटता भी उतनी ही खास है। इन परंपराओं को सहेजना और नए दौर की जरूरतों से जोड़ना आसान नहीं होता। लेकिन जब कोई संस्था साथ खड़ी हो जाए, तो यह रास्ता और भी सरल हो जाता है।

टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड की विष्णुगाड़–पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना (वीपीएचईपी) यही साबित कर रही है कि विकास केवल ऊर्जा उत्पादन से नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति के उत्थान से भी मापा जाता है। इसी सोच के साथ परियोजना प्रबंधन ने हाल ही में हाट गाँव की महिला मंगल दल और ग्राम जैसाल के लोगों को सहयोग प्रदान किया।

महिला मंगल दल को सामुदायिक गतिविधियों को और सुव्यवस्थित बनाने के लिए कुर्सियाँ, दरी, ढोलक, चिमटा, मंजीरा और प्रेशर कुकर जैसी सामग्री दी गई। ये वस्तुएँ सिर्फ सामान नहीं हैं, बल्कि गाँव की महिलाओं के आत्मविश्वास और सामूहिक शक्ति को नई दिशा देने वाले साधन हैं। वहीं, ग्राम जैसाल में आयोजित होने वाली माँ नंदा पदयात्रा के लिए प्रेशर कुकर, बाल्टियाँ, प्लेटें, त्रिपाल और केतली जैसी वस्तुएँ उपलब्ध कराई गईं, जिससे यह धार्मिक और सांस्कृतिक यात्रा और भी गरिमामय ढंग से सम्पन्न हो सके। इन अवसरों पर ग्रामीणों के साथ टीएचडीसी के तरफ से श्री अनुनेंदु भट्ट, उप प्रबंधक (सामाजिक) और सुश्री अभिजीत साहू, फील्ड ऑफिसर (सामाजिक) समेत सामाजिक विभाग के अन्य कर्मचारी भी उपस्थित थे.

इस पहल पर श्री अजय वर्मा, परियोजना प्रमुख (वीपीएचईपी) ने कहा–

“किसी भी परियोजना की असली सफलता तभी है जब स्थानीय लोग विश्वास और आत्मीयता से उससे जुड़ें। सांस्कृतिक परंपराओं का संरक्षण और सामुदायिक संस्थाओं को मजबूत करना हमारी साझा प्रगति की राह को और भी मजबूत बनाता है।”

वहीं, श्री के.पी. सिंह, महाप्रबंधक (सामाजिक एवं पर्यावरण/टीबीएम) का मानना है–

“ऐसे सहयोग छोटे दिखाई देते हैं, लेकिन इनके असर बड़े होते हैं। जब महिलाएँ और ग्रामवासी आत्मविश्वास के साथ एकजुट होते हैं, तो न केवल संस्कृति सशक्त होती है, बल्कि विकास की नई राहें भी खुलती हैं।”

आज इन पहलों से गाँव की महिलाएँ ज्यादा संगठित महसूस कर रही हैं और परंपरागत धार्मिक आयोजन भी नई ऊर्जा से सम्पन्न हो रहे हैं। यह केवल सामग्रियों का वितरण नहीं, बल्कि गाँव की आत्मा को सहेजने और समुदाय की शक्ति को पहचानने का प्रयास है।

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