विभिन्न गांवों में 69 काश्तकारों ने शुरू किया चिरायता का कृषिकरण, पढ़ें क्या हैं इसके फायदे–
चमोलीः नंदानगर विकास खंड के गांव-गांव में चिरायता का कृषिकरण होगा। उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केंद्र गढ़वाल विवि श्रीनगर और झंडू फाउंडेशन गुजरात द्वारा ग्रामीणों को चिरायता की पौध उपलब्ध कराने के साथ ही तकनीकी सहयोग भी दिया जा रहा है।
चिरायता हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला औषधीय पौधा है। उत्तराखंड में चिरायता समुद्र तल से 1200 से लेकर 3000 मीटर की ऊंचाई तक बसे गांवों में पाया जाता है। चिरायता की डिमांड अधिक होने के कारण इसके कृषिकरण पर जोर दिया जा रहा है। नंदानगर विकास खंड के खुनाणा, रामणी, पडेरगांव, घेस, पगना, भेंटी और बंगाली गांव के काश्तकारों को चिरायता की करीब 3000 पौधे वितरित की गई।
झंडु फाउंडेशन के वैज्ञानिक प्रभारी डा. विनोद कुमार बिष्ट ने बताया कि पहले चरण में 69 काश्तकारों द्वारा चिरायता का कृषिकरण किया जा रहा है। काश्तकारों को उत्पादों के विपणन के लिए एक खाद्य प्रसंस्करण यूनिट भी स्थापित की जा रही है। जिससे उन्हें उपज का बेहतर मूल्य मिल सके। रामणी गांव के वन सरपंच भगवान सिंंह ने बताया कि ग्रामीणों द्वारा परंपरागत खेती के साथ ही चिरायता का कृषिकरण भी किया जा रहा है। इसके विपणन से ग्रामीणों की आर्थिकी भी मजबूत होगी।
चिरायता का वैज्ञानिक नाम स्वैरसिया चिरायता है। औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में इसका अत्यधिक महत्व है। चिरायता का पौधा एक से 1.5 मीटर तक लंबा होता है। चिरायता में चिराटिन, स्वर्चिरिन जैसे अवयव होने के कारण यह औषधीय गुणों से भरपूर है। ज्वर नाशक व रक्तशोधक होने के साथ ही यह आंखों से संबंधित बिमारियों, मलेरिया, बुखार, शरीर की सूजन को कम करने, दमा, गठिया, मूत्र विकार और त्वचा रोगों में इसका उपयोग किया जाता है।