नारायणबगड़। डेढ़ साल तक उन्होंने जूली ( हिरन का बच्चा) को अपने बच्चे की तरह पाला, बोतल से उसे दूध पिलाया, खाना दिया, रहने के लिए कमरा दिया। शनिवार को जूली अपने पालनहार से बिछुड़ गई है। वन विभाग के कर्मी जूली को अपने साथ देहरादून स्थित मालसी डियर पार्क ले गए। अब जूली इस पार्क में कुलाचे भरेगी। जूली का भरण-पोषण करने वाले दंपति दर्शन लाल और उमादेवी जूली की विदाई पर अपने आंसू नहीं रोक पाए। साल 2020 के चार मार्च को जंगल से भटक कर हिरन की एक नवजात बच्ची गांव के रास्ते पर आ गया था। जंगल में घास लेने गई केवर गांव की उमा देवी को यह बच्ची मिली। उमादेवी ने समझा कि हिरन का बच्चा अभी अभी पैदा हुआ है, इसलिए वह उसे वहीं छोडकर घास लेकर घर आ गई। दूसरे दिन जब उमा जंगल गई तो उसे हिरन का बच्चा बेसुध अवस्था में उसी जगह पर पड़ा मिला। मां का ममत्व जाग गया। वह उसे घर ले आई। बच्चे को गाय का दूध पिलाया गया, खाना दिया, घास दिया और वह स्वस्थ हो गया। केवर गांव के दर्शन लाल और उनकी पत्नी उमा देवी हिरन के बच्चे की जान बचाने में लग गए। 17 माह बाद उन्होंने जूली को वन विभाग को सौंपने का फैसला लिया। शनिवार को वन विभाग की टीम जूली को अपने साथ ले गई। देहरादून जू यानी मालसी डियर पार्क में जूली को रखा जाएगा। जूली की परवरिश के लिए लोगों ने दंपति के कार्य की सराहना की है।