निजमुला घाटी में नंदा घुंघटी पर्वत चोटी की तलहटी में सप्तकुंड के रुप में जाने जाते हैं ये ताल–
गोपेश्वरः चमोली जनपद में प्राकृतिक सुंदरता समेटे निजमुला घाटी में सुरम्य प्राकृतिक तालों का संसार बसता है। यहां सुदूर उच्च हिमालय क्षेत्र में कई ऐसे मनमोहक ताल हैं, जो पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहां स्थानीय लोगों का आना-जाना रहता है। निजमुला घाटी में झींझी गांव से लगभग 24 किमी की दूरी पर स्थित सात तालों के इस दुर्लभ खजाने को ‘सप्तकुंड’ के नाम से जाना जाता है। नंदा घुंघटी पर्वत श्रृंखला की तलहटी में समुद्रतल से लगभग पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित ये ताल एक-दूसरे से लगभग आधे-आधे किमी की दूरी पर स्थित हैं। शीतकाल में ये ताल चारों ओर से बर्फ से ढके रहते हैं और ग्रीष्मकाल में यहां का दृष्य रोमांचित करने वाला होता है। यहां तक पहुंचने के लिए साहसिक पर्यटकों को कठिन पगडंडी व बुग्याली ट्रेक को पार करना पड़ता है।
सप्तप्तकुंड समूह के सात में से छह ताल पार्वती कुंड, गणेश कुंड, नारद कुंड, नंदी कुंड, भैरव कुंड और शक्ति कुंड का पानी ठंडा तो शिव कुंड ताल का पानी बेहद गरम रहता है। इस ताल में कई पर्यटक स्नान करने के लिए उतरते हैं। प्रतिवर्ष इस ताल में नंदा देवी की वार्षिक लोकजात भी संपन्न होती है।
सप्तकुंड पहुंचने के लिए चमोली से बिरही होते हुए निजमुला क्षेत्र के पगना गांव तक सड़क सुविधा उपलब्ध है। पगना से झींझी गांव तक आठ किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है। हालांकि घाटी के अंतिम गांव पाणा तक सड़क निर्माण कार्य जोर शोर से चल रहा है। झींझी से सप्तकुंड के लिए 26 किमी का पैदल ट्रैक है। इसमें झींझी से सात किमी दूर वन विभाग के टिन शेड तक एकदम खड़ी चढ़ाई है। इसके बाद दस किमी के फासले पर गौंछाल ओड्यार (गुफा) पड़ता है। यहां से तीन किमी दूर सिम्बे बुग्याल है, जबकि सिम्बे से सप्तकुंड पहुंचने के लिए छह किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। यह घाटी धार्मिक मान्यताओं से भी जुड़ी है। स्थानीय मान्यता है कि मां काली ने अपने खप्पर पर महाभारत के युद्ध में मारे जाने वाले लोगों के नाम लिखे थे। इनमें अर्जुन का नाम भी शामिल था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को यह बात बताई और उनसे माता पार्वती की तपस्या करने के लिए कहा। द्रोपदी की तपस्या से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उन्हें दर्शन दिए। तब द्रोपदी ने उनसे मां काली के खप्पर के बारे में पूछा। माता ने उन्हें बताया कि यह खप्पर सप्तकुंड में मौजूद है। इसके बाद माता पार्वती स्वयं सप्तकुंड पहुंचीं और खप्पर से अर्जुन का नाम मिटाकर उसे दो हिस्सों में तोड़ डाला। मान्यता है कि इस खप्पर का आधा हिस्सा कोलकाता और आधा सप्तकुंड में मौजूद है।
सप्तकुंड ट्रैक के दोनों ओर खड़े बांज, बुरांश, देवदार, कैल, खोरसू मौरू, भोजपत्र आदि के वृक्ष बहुत संख्या में पाए जाते हैं। सप्तकुंड ट्रैक पर झींझी गांव से 20 किमी दूर पड़ने वाले सिम्बे बुग्याल में सैकड़ों प्रजाति के रंग-बिरंगे फूल पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि निजमुला घाटी में सात नहीं, बल्कि 11 ताल हैं। लेकिन, लोगों को जानकारी सिर्फ सात तालों के बारे में ही है।