रुद्रप्रयाग: लंबी बीमारी के बाद सोमवार को गढ़वाल में राजनीतिक एवं सांस्कृतिक चेतना के द्योतक डॉ. योगम्बर सिंह बर्त्वाल ने अंतिम सांस ली। वे 75 वर्ष के थे। उनके निधन पर उत्तराखंड में साहित्य, पत्रकारिता, सांस्कृतिक सरोकारों से जुड़े लोगों ने दुख व्यक्त किया। स्वर्गीय डॉ. योगंबर सिंह बर्त्वाल ने कई किताबें लिखी और कई किताबों का संपादन भी किया।
प्रसिद्ध कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल के कविता संसार से हिंदी साहित्य को अवगत कराने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा। वे हिमवन्त कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान के सचिव भी थे। जिसके माध्यम से वे हर वर्ष 20 अगस्त को चंद्रकुंवर बर्त्वाल की जन्म तिथि को बड़े गौरव के साथ मनाते थे। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ पड़ी है। चन्द्रकुवर बर्त्वाल स्मृति शोध संस्थान के अध्यक्ष हरीश गुसाईं ने कहा कि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की कविताओं को सहेज कर राष्ट्रीय फलक पर चर्चित कराने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
वे चन्द्रकुवर बर्त्वाल के बाल सखा शम्भू प्रसाद बहुगुणा के बाद ऐसे व्यक्ति रहे जिन्होंने चन्द्रकुंवर बर्त्वाल को नई पहचान दी। उन्हें चन्द्रकुंवर के काव्य का विश्वकोश भी कहा जाता था। जितना कार्य उन्होंने चन्द्रकुंवर बर्त्वाल पर किया उतना कोई नहीं कर पाया। उनके निधन से चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की कविताओं की खोज एवं प्रकाशन को अपूर्णाय क्षति पहुंची है।
उनके निधन पर शोक व्यक्त करने वालों में केदारनाथ विधायक शैलारानी रावत, पूर्व विधायक मनोज रावत, आशा नौटियाल, पूर्व राज्य मंत्री अशोक खत्री, अगस्त्यमुनि की नगर पंचायत अध्यक्ष अरूणा बेंजवाल, साहित्यकार पद्मसिंह गुसाईं, प्रोफेसर दिनेश चमोला, नरेन्द्र कठैत, बीना बेंजवाल, रमाकान्त बेंजवाल, गिरीश बेंजवाल, नरेन्द्र रौथाण, सुधीर बर्त्वाल, कालिका काण्डपाल, गजेन्द्र रौतेला, दीपक बेंजवाल, कुसुम भट्ट, ललिता रौतेला, अनूसया मलासी, गंगाराम सकलानी, हेमन्त चौकियाल, ओमप्रकाश चमोला आदि कई लोग रहे।