जोशीमठ। uttrakhand चमोली जनपद के उर्गम घाटी में खूबसूरत बुग्यालों के बीच वंशीनारायण का मंदिर स्थित है। यह मंदिर वर्षभर में सिर्फ रक्षा बंधन पर्व पर ही खुलता है। मंदिर में पूजा-अर्चना कर प्रसाद वितरण के बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है। विभिन्न स्थानों से पहुंचे भक्तगण व ध्याणियां (बेटियां) भगवान वंशीनारायण को राखी भेंट करने के साथ ही पूजा अर्चना करते हैं। भगवान को राखी पहनाने के बाद सभी लोग एक दूसरे को राखी बांधते हैं। वंशीनारायण मंदिर कत्यूरी शैली में बना है। करीब दस फिट ऊंचे इस मंदिर का गर्भ भी वर्गाकार है। जहां भगवान विष्णु चर्तुभुज रूप में विद्यमान है। इस मंदिर की खास बात यह है कि इस मंदिर की प्रतिमा में भगवान नारायण और भगवान शिव दोनों के ही दर्शन होते हैं। वंशी नारायण मंदिर में भगवान गणेश और वन देवियों की मूर्तियां भी मौजूद हैं। दूर-दूर से भक्तगण मंदिर में पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं। रक्षा बंधन को लेकर ग्रामीण मंदिर को सजाना शुरू कर दिया है। मान्यता है कि इस मंदिर में देवऋषि नारद 364 दिन भगवान नारायण की पूजा अर्चना करते हैं और मनुष्यों को पूजा करने का अधिकार सिर्फ एक दिन के लिए ही है। मान्यता है कि एक बार राजा बलि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वह उनके द्वारपाल बने। भगवान विष्णु ने राजा बलि के इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए। भगवान विष्णु के कई दिनों तक दर्शन न होने कारण माता लक्ष्मी परेशान हो गई और वह नारद मुनि के पास गई। नारद मुनि के पास पहुंचकर उन्होंने माता लक्ष्मी से पूछा के भगवान विष्णु कहां पर है। जिसके बाद नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को बताया कि वह पाताल लोक में हैं और द्वारपाल बने हुए हैं। नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय भी बताया। कहा कि आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांध दें। रक्षासूत्र बांधने के बाद राजा बलि से भगवान नारायाण को वापस मांग लें। माता लक्ष्मी के आग्रह को स्वीकार कर नारद भी उनके साथ पाताल लोक चले गए। जिसके बाद नारद मुनि की अनुपस्थिति में कलगोठ गांव के पुजारी ने वंशी नारायण की पूजा की तब से ही यह परंपरा चली आ रही है। जनदेश संस्था के सचिव लक्ष्मण सिंह नेगी, रघुवीर सिंह और देवेंद्र रावत का कहना है कि रक्षाबंधन के दिन ग्रामीण भगवान जी को मक्खन का भोग लगाते हैं। कलगोठ गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के लिए मक्खन लाया जाता है। यहां पर एक फूलवारी भी है। यहां के फूलों से मंदिर को सजाया जाता है और भगवान का श्रृंगार किया जाता है। मंदिर में पूजा अर्चना के बाद पूरे गांव में रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है।