मोरारी बापू ने कहा जिसके पास ऋषि की वाणी और मुनी का मौन है वह साधु है, पढ़ें, पूरी खबर–
नंदप्रयाग, 11 मई 2025: अलकनंदा और नंदाकिनी नदी के संगम स्थल नंदप्रयाग के देवलीबगड़ में प्रसिद्ध कथावाचक मोरारी बापू की रामकथा रविवार को संपन्न हो गई है। इस दौरान कथा सुनने के लिए हजारों की संख्या में भक्तगण उमड़ पड़े। कथा के प्रारंभ में बापू ने आज नृसिंह जयंति की सब को बधाई दी। और मधर्स डे पर माता आदि भवानी से लेकर दूनिया भर की माताओं को प्रणाम किया। कल बुद्ध पूर्णिमा आने वाली है, इसकी भी बापू ने विश्व को बधाई दी।
आनंद मीमांसा करते हुए बापू ने कहा कि आनंद और परमात्मा दो नहीं, एक ही है। जैसे सत्य ही परमात्मा है, प्रेम ही परमात्मा है, करुणा ही परमात्मा है, वैसे आनंद ही परमात्मा है। परमात्मा ही आनंद है।
परमात्मा गुणातीत है। सत्य गुण नहीं है, चिद् भी गुण नहीं स्वरुप है और आनंद भी स्वरुप है – तो सच्चिदानंद परमात्मा भी गुण नहीं है, स्वरुप है। जिसको चोबिसोघंटो आप आनंद में देखो, समज लेना कि वही परमात्मा है।
आज भी शंकराचार्यजी महाराज के श्लोक के आधार पर बापू ने आनंद शब्दब्रहम के बारे में संवाद किया। आनंद लहेरी – मुक्तानंद लहेरी का जिक्र करते हुए बापू ने कहा कि मुक्त आनंद वो है जहां कोई बाधा नहीं। शास्त्रों के बतायेगयें आठ प्रकार के बंधनों से कोई बाधा न हो, उस स्थिति को मुक्तानंद कहते है।
बुद्ध पुरुष के दर्शन से, उसको सुनने से, उसके स्मरण से आनंद आ जायेगा। अकारण आपके तन, मन, ह्रदय में आनंद की लहरी आ जाये उसी क्षण आनंद रुपी परमात्मा आप में सक्रिय हुआ है।
जिसको गुरूदिक्षा मिल गई हो, जिसने गुरु ने छू लिया हो वह सदा आनंद में ही रहेगा।
बापू ने कहा कि वर्तमान युग में स्वर्ग में मिलने वाली सभी सुविधाएं हमें पृथ्वी पर उपलब्ध है। स्वर्ग से भी अधिक पृथ्वी पर आनंद है क्यूंकि स्वर्ग में सब कुछ है पर भगवत् कथा नहीं है!
जहां भगवत् कथा होती है वही हमारा स्वर्ग है। हम नो दिनों से स्वर्ग में जी रहे थे।
गोस्वामी की व्याख्या करते हुए बापू ने कहा कि जिस के विवेक से इन्द्रियां उनकी शरणागत हो गई, वह गोस्वामी है।
जिसके पास ऋषि की वाणी है और मुनी का मौन है वह साधु है। खुली आंखो से भी जिसको किसी के प्रति आकर्षण न हो, उस स्थिति को व्यामोह कहते है।
जो तमोगुण से मुक्त हो गया है वह आनंद लहेरी का अधिकारी बनता है। बापू ने अपने श्रोताओं को कहा कि कभी कभी मौन रहा करो। दिन में घंटे का, सप्ताह में दिन का और जन्मदिन पर जितनी साल के हुए हो, इतने घंटो का मौन रखना। केवल वाणी का मौन नहीं, मन का भी मौन – भीतर डूबो देने वाला मौन!
बापू ने कहा कि मेरा बोलना बोलना नहीं है। कभी कभी मुझे लगता है कि मैं बोल नहीं रहा हूँ, सुन रहा हूँ।
बापू ने कहा कि मौन में नीजस्वरुप का बोध कायम बना रहता है। और मौन मुस्कुराता होना चाहिए। मैं बोलता हूं पर मुझे मेरी वाणी से परमात्मा तक नहीं, आप तक पहुंचना है।
बापू ने कहा कि साधु से केवल प्यार मांगो। जो प्यार उसने परमात्मा के लिए रखा है वो प्यार साधु आपको दे देगा। कथा के क्रम में बहुत संक्षेप में बापू ने बाकी के पांचो कांड का संवाद – गान किया और आखिर में सारसूत्र देते हुए कहा कि राम का सुमिरन करो, राम को गाओ और राम की कथा को सुनो। इस कलियुग में राम का नाम ही आखिरी आश्रय है। सब ने बहुत श्रद्धा और आदर से कथा श्रवण की और जिन्हों ने सेवा की उन सभी को साधुवाद देते हुए बापू ने रामकथा रुपी प्रेम यज्ञ का समापन किया।