चमोली। जनपद की उर्गम घाटी में एक ऐसी पंच धारा है, जिसका पानी भीषण गर्मी में भी कम नहीं होता है। यह धारा पंचम केदार कल्पेश्वर मंदिर के राश्ते पर स्थित है। ग्रामीण इन धारों को धार्मिक मान्यता से जोड़कर इनकी पूजा अर्चना करते हैं। समय-समय पर धारों के मूल स्रोत के साथ ही इर्द-गिर्द साफ सफाई की जाती है। यह पंचधारा जो आज भी पौराणिक संस्कृति की गवाह है, ऋग्वेद के 7 वें अध्याय में उल्लेख है कि इस धरातल पर अवतरित होकर गंगा हिमालय में विराजमान भगवान भोले शंकर की जटाओं में उलझ कर पांच धाराओं में विभक्त हो गयी थी, जो मानव जाति के पापों के निवारण के लिए आज भी इन पंच धाराओं में बहती दिखाई पड़ती है। लोक मान्यताओं के अनुसार कालांतर में इन धाराओं का निर्माण पाण्डवों ने करवाया था। 52 गढ़ों के राजाओ में राजा कनकपाल ने अपनी रानी की सुविधा के लिए इन धाराओं का जीर्णोधार करवाया था, जो पल्लागढी के समीप रहते थे। तराश कर बनाये गये पत्थरों से निर्मित ये धाराएं आज भी सुरक्षित हैं।
इस पंचधारा से निकलती पानी की धारा का पानी कभी कम नहीं होता है। उर्गम घाटी के ग्रामीण समय-समय पर सामूहिक सफाई अभियान चलाकर पंच धारा की साफ-सफाई करते हैं। उर्गम गांव के पूर्व प्रधान लक्ष्मण सिंह नेगी ने बताया कि उर्गम घाटी की पंचधारा आज भी जल संरक्षण की मिशाल बनी हुई है। इन धाराओं का पानी कभी कम नहीं हुआ है। वे कहते हैं कि पेयजल स्रोतों को यदि जिंदा रखना है तो उन पर सीमेंट वर्क नहीं होना चाहिए। पोराणिक धारों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।