पढ़ें, कैसे पांडवों को दर्शन न देने के लिए भगवान शिव ने कर लिया था भैंसे का रुप धारण–
रुद्रप्रयागः उत्तराखंड का सबसे बड़ा शिव मंदिर केदारनाथ रुद्रप्रयाग जिले के अंतर्गत मंदाकिनी नदी के तट पर समुद्र तल से 3585 मीटर की ऊंचाई पर सुरम्य पर्वत श्रृंखलाओं की घाटी में अवस्थित है, जनश्रुति के अनुसार पांडवों या उनके वंशजों ने इस मंदिर का निर्माण किया था, पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार, पांडवों ने महाभारत युद्ध में अपने सगे संबंधियों के वध के बाद पाप से मुक्ति पाने के लिए शिव की तपस्या की, मगर शिव गोत्र हत्या के दोषी पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए भगवान शिव हिमालय की ओर निकल पड़े।
पांडव भी पाप से मुक्ति पाने की इच्छा से शिव के पीछे चल दिए, मान्यता है कि केदारनाथ पुरी से करीब 52 किलोमीटर पहले गुप्तकाशी में भगवान शिव अंतर्ध्यान हो कर भेंसे के रूप में केदार पूरी में प्रकट हुए। भीम ने घास चरती भैंसों के मध्य भगवान शिव की पहचान करने के लिए ऊंचे शिखरों पर अपने पैर फैला दिए और अपने भाइयों से भैंसों को हांकने के लिए कहा। फल स्वरुप भैंसों को उनके पांव के नीचे से होकर गुजरना पड़ा। भैंस रूपी शिव ने भीम के पैरों के नीचे से गुजरने के अपमान की अपेक्षा पृथ्वी में धंस कर अंतर्ध्यान होना ही उचित समझा। इस पर भीम ने शिव रूपी भैंस की पूंछ को पकड़ लिया, जिससे भैंस का पिछला भाग ही बाहर रह गया और उसने शिला का रूप धारण कर लिया। जो शीला वहां आज भी विद्यमान है। भेंसे रूपी शिव का अगला भाग नेपाल में जाकर प्रकट हुआ, जो पशुपतिनाथ के नाम से विख्यात है।
एक अन्य धारणा यह भी है कि सतयुग में भगवान शिव एकांत की तलाश में जब हिमालय क्षेत्र में भटकते भटकते यहां पहुंचे, तो वह इसी शांत स्थल पर निवास करने लगे, शिव पुराण के 19वें अध्याय के अनुसार भगवान शिव कहते हैं कि केदार क्षेत्र उतना ही पुराना है जितना मैं हूं। मैंने इसी स्थान पर ब्रह्मा के रूप में ब्रह्म तत्व प्राप्त कर सृष्टि की रचना की, तभी से यह मेरा सनातन आवास है। इसीलिए इस स्थान को भू स्वर्ग के समान माना जाता है। यह भी मान्यता है कि केदार पुरी के मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था जनश्रुति के अनुसार, आदि गुरु शंकराचार्य ने केदार पूरी में ही अपनी देह त्याग दिया था। मंदिर के पीछे उनकी समाधि भी मौजूद है।
केदार पुरी के मंदिर की बनावट कत्यूरी शैली की बताई जाती है, समतल धरातल पर अवस्थित यह मंदिर पटवा व भूरे रंग के पत्थरों को जोड़कर बनाया गया है, बताया जाता है कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण 6 फुट ऊंचे पद पर किया गया, मंदिर के चबूतरे और चारों ओर खुला स्थान है, मंदिर के गर्भ गृह में त्रिकोण आकृति की एक शिला का ऊर्जा काफी ऊंचाई तक उभरा हुआ है जिस पर श्रद्धालु तांबे के बर्तन से जलाभिषेक करते हैं, इसके बाएं ओर दो स्पष्ट लेख मौजूद हैं, लिंग के चारों किनारों पर मजबूत स्तंभ हैं और यहीं पर प्रदक्षिणा की जाती है। मंदिर के द्वार पर 24 अवतारों की मूर्तियां हैं, मंदिर के सभा मंडप में चार पाषाण स्तंभ हैं, जबकि दीवारों पर 8 पुरुष प्रमाण मूर्तियां हैं, जिन्हें पांडव व द्रोपदी की बताया जाता है।
केदार धार्मिक ही नहीं, प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण स्थान है। केदारनाथ मंदिर से दो किलोमीटर की दूरी पर गहरे नीले जल वाला चोराबाड़ी सरोवर स्थित है, जहां से वर्ष 2013 में भीषण जलप्रलय आपदा आई थी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अस्थियों का विसर्जन यहीं पर किया गया था, तब से इसे गांधी सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। वहां से पांच किलोमीटर दूरी पर स्थित वासुकी ताल अपने पारदर्शी जल के लिए विख्यात है। इसके अलावा भीम गुफा, भीम शिला, भकुंडा भैरव समेत अन्य कई दर्शनीय स्थल भी हैं, केदारनाथ जाने के लिए गौरीकुंड से 14 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है, केदारनाथ के लिए गौरीकुंड आखरी बस स्टेशन है, जहां घोड़ा डंडी-कंडी आदि की व्यवस्था रहती है। इस रास्ते के नीचे मंदाकिनी नदी बहती है, जबकि रास्ते के दोनों ओर मनोहारी घने जंगल हैं। इसके अलावा बर्फ से आच्छादित ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं और प्राकृतिक सौंदर्य को काफी नजदीक से देखा जा सकता है।