मां की चिता को देख नदी किनारे जोर-जोर से रोकर मां को आवाज लगाने लगा दस साल का रौनक, उसके साथ ग्रामीण भी रोए–
तिलवाड़ाः लुठियाग गांव की आशा, सोना और माला देवी खेतीबाड़ी, घर, पानी का पंदेरा के साथ ही अंतिम सांस तक भी एक साथ रही। तीनों की मौत के बाद से गांव में मातम पसरा हुआ है। शुक्रवार को मंदाकिनी नदी किनारे तीनों मृतक महिलाओं की चिताएं एक साथ जली। उनके परिजन बिलख-बिलख कर रो पड़े।
बृहस्पतिवार को दोपहर बाद लुठियाग गांव की माला देवी, सोना देवी और आशा देवी अन्य महिलाओं के साथ घर की लिपाई-पुताई के लिए चिरबटिया से कुछ दूर मिट्टी लेने गईं थीं। ये तीनों महिलाएं मिट्टी खदान में खुदाई कर रहीं थी। जबकि अन्य महिलाएं खोदी गई मिट्टी को थैलों में भर रही थी। अपराह्न लगभग तीन बजे खदान का ऊपरी हिस्सा टूटकर महिलाओं के ऊपर आ गिरा, जिससे मिट्टी में दबकर उनकी मौत हो गई। जखोली व घनसाली तहसील प्रशासन, राजस्व पुलिस और रेगुलर पुलिस द्वारा आपदा प्रबंधन टीम और ग्रामीणों की मदद से शवों को खदान से बाहर निकाला गया। साथ ही जरूरी कार्रवाई के बाद शवों को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय रुद्रप्रयाग भेज दिया गया था।
शुक्रवार को सूर्यप्रयाग में मंदाकिनी के किनारे तीनों मृतकों का दाह संस्कार किया गया। मृतका आशा देवी को मुखाग्नि देने के बाद दस वर्षीय रौनक नदी किनारे बैठकर एकटक जलती चिता को देखता रहा। जब पूरी चिता जल गई तब बदहवास रौनक फफक-फफक कर रोते हुए अपनी मां को आवाज देने लगा। उसके साथ अन्य गांव के लोग भी अपनी आंखों से आंसू नहीं रोक पाए। 40 वर्षीय आशा देवी की तीन संतानों में रौनक सबसे छोटा है और कक्षा सात में पढ़ता है।
घटना की रात लुठियाग-चिरबटिया गांव में कोई परिवार नहीं सोया। प्रभावित परिवारों के साथ अन्य कई घरों में भी रोटी-सब्जी नहीं बनी। लोगों ने छोटे बच्चों को दिन का बचा भोजन कराने के बाद उन्हें सुला दिया, जबकि बड़े-बुजुर्ग रातभर प्रभावित परिवारों के साथ रहे। ग्राम प्रधान दीपक कैंतुरा ने कहा कि इस घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया है। ऐसी घटना पहली बार क्षेत्र में घटित हुई है।