चमोली। जिन गांवों में लोग रात को लेंप और छिल्लों के सहारे रात का अंधेरा काटते थे, आज उन गांवों में सोलर लाइटें अपनी रोशनी बिखेर रही है। चारों ओर सोलर लाइटों की जगमगाहट है। गांवों में विकास चरम पर है, लेकिन सिर्फ धनाड्य वर्ग का। गांवों में जिनका कोई बोलने वाला नहीं है, इधर-उधर (विभागों में) जाने वाला नहीं है, उन्हें कोई सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है, सिवाय मनरेगा के। यह स्थिति तब है, जब ब्लॉक से लेकर जिला स्तर पर अधिकारियों की भरमार है। हर दिन ग्रामीण क्षेत्रों में बैठकें आयोजित हो रही हैं। फाइलों के पन्ने भरते जा रहे और कागजों में ही करोड़ों की योजनाएं बनती जा रही हैं। आज स्थिति यह है कि अधिकांश गांवों में जो सोलर लाइटें वितरित की गई हैं, वो धनाड्य वर्ग या पहूंच वाले लोगों के घरों को ही रोशन कर रही हैं। दशोली, जोशीमठ, घाट, पोखरी, नारायणबगड़, थराली, देवाल, गैरसैंण, कर्णप्रयाग क्षेत्रों के गांवों में देखा जाए तो कुछ ही सोलर लाइटें आम रास्तों में पथ प्रकाश के लिए लगी हुई हैं, जबकि अधिकांश लाइटें पहुंच वाले लोगों के घरों के बाहर लगी हुई हैं। यह इसलिए भी हो रहा है कि जब लाइटें गांवों में पहुंच रही हैं तो उसे कहां स्थापित किया जा रहा है और कौन इसके लिए पात्र है, इसका आंकलन नहीं किया जा रहा है, जिससे गांवों में कहीं भी लाइटें लगा दी जा रही हैं। एक जगह ऐसी भी हुई घटना— जिले के एक गांव में 17 सोलर लाइटें पहुंची, ग्राम प्रधान व अन्य जनप्रतिनिधियों ने मिल बैठ कर तय किया कि लाइटें कहां-कहां लगेंगी, जिसके बाद लाइटें जगह-जगह स्थापित कर दी गई। अब हुआ यह कि ग्राम प्रधान को कई बार एक व्यक्ति सोलर लाइन देने की मांग कर रहा था, लेकिन उसकी मांग पूरी नहीं हो पाई। जिस पर आक्रोशित होकर उस व्यक्ति ने गांव के रास्ते के गदेरे पर लगी लाइट को रात के अंधेरे में उखाड़कर अपने घर के बाहर लगा दी। स्थिति यह रही कि जब वह चोरी छिपे लाइट को खंबे सहित अपने कंधे पर ले जा रहा था तो उसके कंधे पर भी लाइट निरंतर जल रही थी, जिस कारण कई लोगों ने उसे लाइट ले जाते हुए साफ-साफ देखा। –