चमोली: मलारी गांव के ग्रामीणों की भूमि तो ली, पर नहीं दिया मुआवजा, ग्रामीणों में नाराजगी–

by | Jul 31, 2023 | चमोली, मुद्दा | 0 comments

सेना द्वारा उपयोग में लगी गई भूमि का छह दशक बाद भी नहीं मिला मुआवजा–

गोपेश्वर: सीमान्त जोशीमठ विकास खंड के सीमावर्ती गांव मलारी के ग्रामीणों ने 1962 मे चीन आक्रमण के दौरान भारतीय सेना को तकरीबन 300 नाली नाप भूमि देश हित को सर्वोपरि मानते हुए उपयोग हेतू दी थी, जिस पर वर्तमान समय में सेना के रेजिमेंट बसा हुआ है। प्रधान संघ के जिला महामंत्री व कागा गांव के ग्राम प्रधान पुष्कर सिंह राणा ने ग्रामीणों के हवाले से बताया कि 1962 मे युद्ध की स्थिति/आपातकालीन स्तिथि को देखते हुए गांव वालों ने बिना कोई शर्त या एग्रीमेंट के ही देश को सर्वोपरि मानते हुए, अपनी नाप भूमि जिस पर अपनी आजीविका का साधन जुटाते थे या ऐसा भी कह सकते है कि जिस भूमि से अपने जीवनयापन करते थे उस भूमि को भारतीय सेना को दे दी। लेकिन तब से लेकर आज तक छह दशक बीत जाने के बाद भी सरकार/भारतीय सेना द्वारा ग्रामीणों को कोई भी मुवावजा उस नाप भूमि के बदले नही दिया गया।

ग्रामीणों का ये भी कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी जी के प्रमुख योजनाओं मे एक योजना सीमावर्ती गांवों को वाइब्रैंट विलेज (जीवंत ग्राम) योजना के माध्यम से विकसित करना जैसे चौबीसों घंटे बिजली, पानी, स्वास्थ्य व यातायात सुविधा मुहिया करवा के जो लोग गांवों से शहर की ओर पलायन कर रहे,उसको रोकना,पर्यटन को बढ़ावा देकर सीमावर्ती क्षेत्रों में रोजगार की सुविधा उपलब्ध करवाना औऱ जो लोग पलायन कर चुके। उन्हें रिवर्स पलायन के लिए बाध्य करना और गॉव को जीवंत करना। एक बढ़िया सोच है।मगर मलारी गॉव मे ठीक इसके विपरीत सेना द्वारा जबरन ग्रामीणों की नाप भूमि पर सेना द्वारा कब्जा किया जा रहा आये दिन यहां पर सेना द्वारा ग्रामीणों की नाप भूमि पर पक्के भवनों का निर्माण कार्य किया जा रहा है।जो कि एक सोचनीय विषय है। मलारी गांव के पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य सुपिया सिंह राणा का कहना है कि हम गांव वाले भारतीय सेना या सरकार के विरोधी नहीं हैं।लेकिन ग्रामीणों के नाप भूमि का मुआवजा मिलना चाहिए। ये उनका अपना हक है।

error: Content is protected !!